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प्रधानविषय
अध्याय
१ ब्रह्ममार्गाचारप्रकरणवर्णनम् -
ପ୍ରଧ୍ୟର
१६६६
के निर्माता भी हैं । इस स्मृति
आश्वलायन गृह्यसूत्र में शंख, औशनस, व्यास और प्राजापत्यादि स्मृतियों की रीति पर व्यवहार प्रकरण का स्थान नहीं है केवल धार्मिक और सांस्कृतिक आचार का ही विस्तृत वर्णन है । इससे इन स्मृतियों की प्राचीनता का अनुमान होता है । यथा“धर्मेकताना पुरुषाः यदासन् सत्यवादिनः” जब जनता धर्मपरायण रही उस समय सब सत्यवादी होते थे । इस कारण व्यवहार अर्थात् दण्डदापन राजशासन विधि की आवश्यकता न होने से व्यवहार प्रकरण का विस्तार नहीं रखा गया है । इस अध्याय में मुनियों ने आश्वलायन आचार्य से द्विजातियों के धम कहकर मनुष्यों के सांस्कृतिक जीवन के आधार पर प्रश्न किया, साथ ही यह बताया कि इस प्रकार के आचरण करनेवाले 'मनुष्य स्वर्गगामी होते हैं। द्विज शब्द यहाँ पर मनुष्य शब्द का वाचक है। प्रातः काल ब्राह्म मुहूर्त में उठना, शौचाचार एवं स्नान के मन्त्रों का वर्णन किया है (१-३६)। सूर्यार्घ्य, सायं प्रातः और