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[ ६२ ] अध्याय
प्रधानविषय का स्तर विधिवत् उपनयन वेदाध्ययन से प्रारम्भ कर मनुष्य के आचरण का चित्रण वैज्ञानिक मित्ति पर किया जिस प्रकार के संस्कृत जीवन से
मनुष्यता का सवा विकाश हो जाय (१-६४)। . २ ब्रह्मचारिप्रकरणे शौचाचारवर्णनम् । १५५६
किस किस समय आचमन कर शुद्ध होना चाहिये यहां से प्रारम्भ कर ब्रह्मचारी के सम्पूर्ण कर्म शौचाचार प्राचारी की शिक्षा पद्धति का सुचारु निरूपण किया है। ब्रह्मचारिप्रकरणेऽनेकप्रकरणवर्णनम् । १५६० ब्रह्मचारिप्रकरणे गायत्रीमन्त्रसारवर्णनम् १५६५ ब्रह्मचारिप्रकरणेऽनेकविचारवर्णनम् । १५६७ ब्रह्मचारिप्रकरणे नित्यनैमित्तिकविधिवर्णनम् १५६६ नैमित्तिकश्राद्धविधिवर्णनम्
१५७१ श्राद्धप्रकरणवर्णनम् ।
१५७३ विद्या पढ़ने की विधि, गुरु के प्रति व्यवहार, ब्रह्मचारी के धर्म, वेदाध्ययन की आवश्यकता स्वाध्यायी