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________________ । का [ ५५ ] अध्याय . प्रधानविषय पृष्ठा ६ आदि उत्पात तथा महारोग दूर होते हैं । संवत्सर, प्रति संवत्सर या प्रति ऋतु में महोत्सव करने का विधान लिखा है। इन महोत्सवों में मण्डप के सजाने की विधि और नगर कीर्तन यज्ञ आदि की विधि बताई है। किस दशा में किस सूक्त का पाठ करना बताया है। भगवान को नीराजन कर शय्या में सुलाना उसके मंत्र बताये गये हैं और विस्तार से बृहत्पूजन की विधि बताई है। श्राद्ध का वर्णन और श्राद्ध न करने पर नारायणबलि का विधान बताया है (१-१५५ )। सात्विक, राजसिक, तामसिक प्रकृति का वर्णन और पाप के अनुसार नरक की गति और उन नरकों के नाम ( १५६-१७१)। ६ महापातकादि प्रायश्चित्त वर्णनम्- ११४३ पापों का वर्णन ( १७२)। महापाप जिनका कि अग्नि में जलने के अतिरिक्त और कोई प्रायश्चित्त नहीं उनका वर्णन आया है। सब प्रकार के पाप, प्रकीर्ण पाप और उनका प्रायश्चित्त बताया है। द्वादशाक्षर मंत्र के जप से पापों का नाश और शुद्धि बताई है (१७३-२४५)।
SR No.032668
Book TitleSmruti Sandarbh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaharshi
PublisherNag Publishers
Publication Year1988
Total Pages696
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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