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[ ७२ ] अध्याय प्रधानविषय
पृष्ठाङ्क है। चोरी करना, परस्त्री हरण, हिंसा सबके लिये
पाप बताया है ( १४१-१७४)। ४ प्राप्तकालभगवत्समाराधनविधौ राजधर्मवर्णनम् १०६७
राजधर्म का वर्णन, दण्डनीति विधान–प्रायः वही है जो याज्ञवल्क में हैं। इसमें विशेषता यह है कि धर्मेच्युत को सहस्र दण्ड विधान बताया है।
स्त्री के साथ व्यभिचार करनेवाले का अंगच्छेदन, .. सर्वस्वहरण और देश निष्कासन बताया है
(१७५-२१३)। युद्ध का वर्णन और युद्ध में राज्य जीतकर उसे अपने आधीन कर राज्य समर्पित ... कर देना इसकी बड़ी प्रशंसा की गई है एवं विजय की हुई भूमि सत्पात्र को देनी चाहिये। सत्पात्र के लक्षण-तपस्या और विद्या की सम्पनता है (२१४-२२३.)। राज्यशासन का विधान कर लगाना, याचित, अनाहित और ऋणदान देने . का विधान, पुत्र को पिता का भृण देना, स्त्री धन की रक्षा, पतिव्रता स्त्री का पालन, व्यभिचारिणी को पति के धन का भाग न मिलने का वर्णन और बारह प्रकार के पुत्रों का वर्णन इस तरह संक्षेप