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पृछाक
[ ६३ ] अध्याय
प्रधान विषय १२ का ध्यान एवं प्रणव का ध्यान जानना और
उसमें भक्ति का वर्णन, ध्यान के प्रकार-किस स्वरूप में तथा किस जन्म में किस देवता का : ध्यान करना इत्यादि का वर्णन । मृत्यु के अनन्तर जीव की दो मार्ग की गति का वर्णन, एक धूममार्ग दूसरा प्रकाश (अर्चि) मार्ग । एक से ब्रह्म की प्राप्ति और एक से स्वर्ग की प्राप्ति । ब्रह्मयोग की प्राप्ति के साधन का वर्णन किया गया है। ब्रह्म का अभ्यास, ध्यान और प्रत्याहार का वर्णन तथा यह बताया है कि "मृत्युकाले मतिर्यास्यात्तां गति याति मानवः”। इसलिये मुमुक्षु को नित्य ऐसा अभ्यास करना चाहिये जिससे अंत समय ब्रह्म ज्ञान का अभ्यास बना रहे। यह पराशरजी से कथित धर्मशास्त्र जो नित्य सुनता है और जो श्राद्ध में ब्राह्मणों को सुनाता है उसके पितरेश्वर तृप्ति को प्राप्त होते हैं ( २४३-३७८)।
श्री बृहत्पराशर स्मृतिस्थ विषयानुक्रमणिका समाप्ता ।