________________
अध्याय प्रधानविषय
पृष्ठाक पुरुषार्थ के सम्बन्ध में विवेचना की गई है। दुष्टों को दण्ड से दमन करना, राजा को प्रसन्नमूर्ति रहना चाहिये क्योंकि राजा सब देवताओं के अंश से बना हुआ है (७२-६५ )।
१२ वानप्रस्थ भिक्षाधर्मवर्णनम्
६४७ वानप्रस्थी के नियम तथा उसके कर्तव्यों का वर्णन आया है। वानप्रस्थ को अपने यज्ञ की रक्षा के लिये राजा को कहना चाहिये । वानप्रस्थी को यज्ञ आदि कर्म करने का विधान और उसको भिक्षा लाकर आठ ग्रास खाने का नियम बताया है (६६-१२०)। वेदान्त शास्त्र को पढ़कर यज्ञविधि को समाप्त कर सन्न्यास में जाने का नियम एवं सन्न्यासी के धर्म, दिनचर्या आदि का वर्णन किया गया है तथा उसको निर्भयता, निर्मोह, निरहंकार, निरीह होकर ब्रह्म में अपनी
आत्मा को लीन करना दर्शाया है ( १२१-१४४ )। १२ चतुर्णामाश्रमाणां भेदवर्णनम्
६५१ ब्रह्मचारी, गृहस्थी, वानप्रस्थी और सन्न्यासी के