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________________ अध्याय [ ३४ ] प्रधान विषय पृष्ठाक रह जाता है (८७-६६)। प्राणायाम के विधान, प्राणवायु के चलने के तीन मार्ग बताये हैंइडा, पिङ्गला, सुषुम्ना, नासिका के दो पुट होते हैं दाहिने को उत्तर और बाएँ को दक्षिण बीच भाग को विषुवृत्त कहते हैं। जो योगी प्रातः, सायं मध्याह्न और अर्धरात्रि में विषुवृत्त को जानता है उसको नित्यमुक्त कहा ह । इस प्रकार प्राणायाम की विधि बताई है। पांच वायु (प्राण, उदान, व्यान, अपान, समान) का नाम लेकर स्वाहा शब्द लगावे, पांच आहुति ग्रास रूप में देवे और दांत नहीं लगावे तो इसे पंचाग्नि होत्र कहते हैं (१७१०७)। शरीर के जिस प्रदेश में जो अग्नि रहती है उसका वर्णन (१०८-१११)। प्राणाग्नि होम का विधान और मुद्रा का वर्णन (११२१२१)। प्राणामिहोत्र विधि का माहात्म्य (१२२१२४)। प्राणामिहोत्र के बाद जल पीने का नियम (१२५-१२७) । प्राणायाम की विधि जानने का माहात्म्य और पांच सात मनुष्यों को खिला कर गृहपत्नी के लिये भोजन विधि ( १२८-१३८)। ६ स षोडश संस्कार मान्हिक वर्णनम् । ७६७ ___ सायं सन्ध्या विधि और कुछ स्वाध्याय करके
SR No.032668
Book TitleSmruti Sandarbh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaharshi
PublisherNag Publishers
Publication Year1988
Total Pages696
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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