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पृष्ठाङ्क ५६८
नहीं जाना चाहिये (५६-६३)। जिसका अन्न नहीं खाना चाहिये उसका खा लेने पर चान्द्रायण (६४-६५) । जो कन्या दुबारा ब्याही जाय उसका अन्न खाने से दोष (६६)। जिनजिन का अन्न आने में दोष हो उसका वर्णन (६७-७२) । राजा के अन्न से तेज का ह्रास, शूद्र के अन्न सेवन से ब्रह्मचर्य का ह्रास और सूतक का अन्न बिलकुल दूषित (७३)।
शातातपस्मृति के प्रधान विषय अध्याय
प्रधान विषय १ अकृत प्रायश्चित्त वर्णनम्
पाप करने पर जो प्रायश्चित्त नहीं करते हैं उनके नरक भोगने के बाद आगामी जन्म में पाप सूचक कुछ चिह्न होते हैं (१-२)। महापातक के चिह्न सात जन्म तक रहते हैं (३) । १ पूर्वजन्माकृत प्रायश्चित्त चिन्हम् ५६६
उपपातक के चिह्न पांच जन्म तक, सामान्य पापों का तीन जन्म तक। दुष्ट कर्मों से जो रोग होते हैं उनकी जप, देवाचन, हवन आदि से शान्ति की जाती है (४)। पहले जन्म के किये पाप नरकभोगगति के अनन्तर बीमारी के रूप में आते हैं उनका शमन जप दानादि से होता है (५)। महापातकादि से होनेवाले रोग कुष्ठ, यक्ष्मा, ग्रहणी, अतिसार आदि होते हैं ( ६-७)। उपपातक से श्वास, अजीर्ण आदि