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[ ६५ ] अध्याय प्रधान विषय
पृष्ठाङ्क स्त्रीशुद्धिवर्णनं, अन्नभक्षणेन भेदान्तर पापवर्णनम्, द्विविवाहितायाः कन्यायाअन्नभक्षणेन प्रायश्चित्तम्, दोषयुक्त मनुष्यान्न वर्णनम् राजान्नं शूद्रान्नं च तेज वीर्यहासकत्वं, सूतकान्नं मलतुल्यं, वर्णनं मिति ।
५६१ प्रायश्चित्त का विधान, अन्त्यज के बरतन में पानी पीने से सान्तपन व्रत बताया है (१-६)। अज्ञान से पानी पीने पर केवल एक दिन का उपवास बताया है (७)। उच्छिष्ट भोजन करने का प्रायश्चित्त बताया है (८-१४)। नीला वस्त्र पहनकर भोजन दान करने से चान्द्रायण व्रत (१५-२२)। जिस भूमि पर नील की खेती एक बार भी की जाय वह भूमि बारह वर्ष तक शुद्ध नहीं होती (२४)। गाय के मरने पर प्रायश्चित्त बताया है औषधि या भोजन देने से गाय मरे तो चौथाई प्रायश्चित्त बताया है (२५.२८)। गोपाल या स्वामी की असावधानी से शृङ्गादि टूटने से गाय के मरने पर भिन्न भिन्न प्रकार का प्रायश्चित्त वताया है (२६-३४ )। रजस्वला स्त्री की शुद्धि ( ३५-४२)। अन्न के दोष और जो जिसका अन्न खाता है उसको उसका पाप भी लगता है (४३-५८)। उन स्थानों की गणना जहां पादुका पहनकर