________________
पृष्ठांक
[ ५६ ] अध्याय
प्रधानविषय ६२ सर्वदानेष्वभय दान महत्व वर्णनम् । ५३३
सब दान से बड़ा अभय दान है। इसके साथ गोदान, सुवर्ण, लवण, धान्य, आदि दान का महत्व वर्णन आया है।
दान के पात्र-गुरु, ब्राह्मण, दुहिता और जमाइ है। . १३ दानाधिकारी ब्राह्मण लक्षण वर्णनम्। ५३५
दान के अधिकारी ब्रह्मणों के लक्षण हैं। १४ गृही कदा वनाश्रमी भवेत्तन्निर्णयः, आचारोपदेश
वर्णनश्च । गृहस्थी बाल सफेद हो जाय तो वानप्रस्थ को चले जाय
या पौत्र हो जाय तो वानप्रस्थ को चल देवे । ६५ स कर्तव्यता-वानप्रस्थाश्रम वर्णनम् ५३६
वानप्रस्थ में तपस्या से शरीर को सुखा देवे। ६६ सकर्तव्या संन्यासाश्रम वर्णनम् । ५३७
तीनों आश्रमों में यज्ञ करने का विधान और संन्यासाश्रम का वर्णन है।
५३६