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[ २८ ] पूधानविषय
पृष्ठाङ्क राजा को व्यवहार के निर्णय में सहायता के लिये संसद (जूरी) का विधान (६८-७२)। सभासद् (निर्णय सभा के) का नियम। ठीक बात को छिपाकर या बढ़ाकर बोलने का पाप (७३)। सभासद को बात बढ़ाने और छिपाने में पाप का संस्पर्श (७४)। सभा का वर्णन (८०)। ऋणादानं प्रथम विवादपदम्
२५८ ऋण के सम्बन्ध में (१)। समय चले जाने पर भी पुत्र को बाप का ऋण चुका देना चाहिये (८-६)। स्त्री पति का ऋण नहीं देवे (१३ )। जो जिसका धन लेनेवाला होता है उसे देना चाहिये (१४)। निर्धन, अपुत्री स्त्री को ले जानेवाले को उसके भृण देना चाहिये (१६)। पुत्र पति के अभाव में राजा का अधिकार ( २३)। पति के प्रेम से दी हुई वस्तु को कोई नहीं ले सकता है (२४)। कौन कुटुम्ब में स्वतन्त्र है और कौन परतन्त्र है इसका वर्णन (२६-३२)। छल से कमाये धन को काला धन कहते हैं (४३)। न्याय का धनागम (५०-५१)। प्रत्येक जाति की अपनी अपनी वृत्ति (५६-६४ )। तीन प्रकारके लिखित, साक्षी, भोग का प्रमाण (६५-७७)। धरोहर का प्रमाण (७३)। स्त्रीधन के रक्षा का विवरण ( ७५)। मृत पुरुष का प्रमाण ( ८०-८६)। रुपये का वृद्धि (व्याज का प्रकार) चक्रवृद्धि का ( Compound interest ) वर्णन (८७-६४).। धनी को ऋणी का लेख बतलाना चाहिये (६८-१००)। प्रतिभू