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[ २७ ] (१७-१००) ब्राह्मण को तपस्या और ब्रह्मविद्या से मोक्ष (१०४)। धर्म की व्यवस्था कौन दे सकता है (१०८)। दस हजार पुरुषों की तुलना में एक आत्मज्ञानी का अधिक मान्य है (११३)। आत्म ज्ञान अध्यात्म जीवन का निरूपण (११६-१२६)। नारदीय मनुस्मृति के प्रधान विषय प्रधानविषय
पृष्टाङ्क व्यवहार दर्शन विधिः
२५० मनु प्रजापति आदि जिस समय राज्य कर रहे थे उस समय सब सत्यवादी थे और जब धर्म का ह्रास हुआ तो नियन्त्रण के लिये व्यवहार की प्रतिष्ठा की गई। इसी के लिये राजा दण्ड नीति का धारण करनेवाला बनाया गया (१-२)। व्यवहार के निर्णय में साक्षी और लेख दो बातें रक्खी गई। जब दो पक्षों में विवाद हो तो साक्षी और लेख का विधान हुआ (३-६) जितने प्रकार के व्यवहार और वाद-विवाद होते हैं उनका वर्णन (६-२०)। विवाद का मौलिक कारण काम क्रोध को बतलाया है (२१)। विवाद के निर्णय की विधि ( २५-३२)। अर्थ शास्त्र और धर्मशास्त्र के बीच मतभेद होने में धर्मशास्त्र की मान्यता (३३-३४)। कोई भी सन्देह हो तो राजा द्वारा निर्णय कराये जाने का विधान (४०)। विनयन का प्रकार (४४-५०) लेख और गवाही (साक्षी) की सत्यता की जांच (५१-६४.)।
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