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पृष्ठाङ्क
[ २६ ] अध्याय
प्रधानविषय १२ कर्मणां शुभाशुभफल वर्णनम्--- २३७
वाचिक, शारीरिक और मानसिक कर्म का वर्णन (४-६)। वाणी के पाप से पक्षियों का जन्म, शरीर के पाप से स्थावर योनि और मन के पाप से शारीरिक दुःख होते हैं । सत्त्व रजस् और तमस् तीन गुणों से नाना प्रकार के पाप (२६)। इन तीनों गुणों का सामान्य जीवों में लक्षण (३४)। जिन कर्मों के करने से मनुष्य को सङ्कोच और लज्जा होती है वह तमोगुण (३५)। जिस कर्म को करने से संसार में ख्याति होती है उसे राजस् कहते हैं ( ३६)। तामसी कर्म की गति (४२-४४)। राजसी कम की गति
(४७)। सात्त्विक कर्म की गति (४८-४६)। १२ कृतकर्मफल वर्णनम्
२४२ ब्राह्मणत्व हरने से ब्रह्मराक्षस की गति (६०)। पृथक् पृथक् वस्तुओं की चोरी करने से भिन्न भिन्न गति (६१) । चोरों को असि पत्र आदि नरक के दुःख (७५) । प्रवृत्ति और निवृत्ति कर्मों का वर्णन (८८)। १२ धर्मनिर्णय क क पुरुष वर्णनम् २४६ स्वराज्य की यथार्थ परिभाषा (११)। राज्य शासन, राष्ट्र और सेना के शासन के लिये वेदधर्म की आवश्यकता