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[ २५ ] अध्याय
प्रधानविषय प्रायश्चित्तों का यज्ञ के लिये धन एकत्र कर यज्ञ में न लगाने
वाले की काक योनि इत्यादि में गति (१-२४)। ११ देवादि धनं हरतीति फलम-
२१५ यज्ञ का वर्णन, यज्ञ की दक्षिणा (३०)। जानकर पाप
करनेवाले को प्रायश्चित्त अवश्य करना (४६)। ११ स्तेयफल वर्णनम्--
२१७ चेरी करनेवाले को पृथक् पृथक् पदार्थ के चोरी करने से शरीर में चिह्न होते हैं जैसे सुवर्ण चोर का दूसरे जन्म में कुनखी
होना इत्यादि (४८)। ११ प्रायश्चित्त वर्णनम्-अगम्यागमन वर्णनश्च--२१८
महापाप आदि का प्रायश्चित्त (५५-१६०)।
बालघाती, कृतघ्न शुद्ध नहीं होता (१६१)। ११ प्रायश्चित्त वर्णनम्
२३१ सान्तपन व्रत, कृच्छू व्रत, चान्द्रायण आदि का वर्णन
(२२३-२३१)। ११ तपमहत्वफल वर्णनम्
२३४ तपस्या से पाप नाश (२४२)। अक्षर प्रणव को जप करने से सर्वपाप क्षय (२६६)।