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________________ ( ६ ) खुर्शीनामा नागोर के गुरो गोपीचन्दजी के पास विद्यमान हैं। सुरा की संतान सुरांगा कहलाई । "" " खरतर यति रामलालजी ने महा० मुक्ता० पृ० ४५ पर लिखा है कि. वि० सं० १९७५ में जिनदत्तसूरि ने सुराणा बनाया - मूलगच्छ खरतर कसौटी - यदि सुरांणां जिनदत्तसूरि प्रतिवोधित होते तो सुरांणागच्छ अलग क्यों होता जो चौरासी गच्छों में एक है उस समय दादाजी का शायद जन्म भी नहीं हुआ होगा अतएव खरतरों का लिखना एक उड़ती हुई गप्प 1 ६ झामड़ कावक - वि० सं० ९८८ आचार्य सर्वदेवसूर ने हथुड़ी के राठोड़ राव जगमालादिकों प्रतिबोध कर जैन बनाये इन्हों को उत्पत्ति वंशावली नागपुरिया तपागच्छ वालों के पास विस्तार से मिलती हैं । - " खरतर - यति रामलालजी महा० मुक्ता० पृ० २१ पर लिखते हैं कि व० सं० १९७५ में खरतराचार्य मद्रसूरि ने झाबुआ के राठोड़ राजा को उपदेश देकर जैन बनाये मूलगच्छ खरतर 99 कसौटी - भारत का प्राचीन राजवंश नामक इतिहास पुस्तक के पृष्ठ ३६३ पर पं० विश्वेश्वरनाथ रेउ ने स्पष्ट शब्दों में लिखा है कि: "यह झाबुआ नगर ईसवी सन् की १६ वीं शताब्दी में लाभाना जाति के झब्बू नायक ने बसाया था परन्तु वि० सं० १६६४ ( ई० सं० १६०७) में वादशाह जहाँगीर ने केसवदासजी (राठोड़) को उक्त प्रदेश का अधिकार देकर राजा की पदवी से भूषित किया ।" सभ्य समाज समझ सकता है कि वि० सं० १६६४ में
SR No.032656
Book TitlePrachin Jain Itihas Sangraha Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year
Total Pages26
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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