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झाबुत्रा राठोड़ों के अधिकार में आया तब वि० सं० १५७५ में वहां राठोड़ों का राज कैसे हुआ होगा ? दूसरा जिनभद्रसूरि भी उस समय विद्यमान हो नहीं थे कारण उनके देहान्त वि० सं० १५५४ में होचुका था भावक लोग इस वीसवीं शताब्दी में इतने अज्ञात शायद् ही रहे हों कि इस प्रकार की गप्पों पर विश्वास कर सकें। भंवाल के झामड विक्रम की पन्द्रहवीं शताब्दी में अन्य प्रदेश से आकर भंबाल में वास किया बहां से क्रमशः
आज पर्यन्त की हिस्ट्री उन्हों के पास विद्यमान हैं अतएव खरतरों का लिखना सरासर गप्प है।
७ बाठिया-वि. सं. ९१२ में आचार्य भावदेवसूरि ने श्राबू के पास प्रमा स्थान के राव माघुदेव को प्रतिबोध कर जैन बनाया उन्होंने श्री सिद्धाचल का संघ निकाला बांठ २ पर आदमी
और उन सब को पैरामणि देने से बांठिया कहलाये बाद वि० सं० १३४० रत्नाशाह से कवाड़ वि० सं० १६३१ हरखाजी से शाहहरखावत हुए इत्यादि इस जाति की उत्पत्ति एवं खुशींनाम शुरू से श्रीमान् धनरूपमलजी शाह अजमेर वालों के तथा कल्याणमलजी वाठिया नागौर वालों के पास मौजूद है। - "ख०-यति रामलालजी महा० मुक्ता० पृष्ठ २२ पर लिखते हैं कि वि० सं० ११६७ में जिनवल्लभसूरि ने रणथंभोर के पँवार राजा जालसिंह का उपदेश दे जैन बनाया मूल गच्छ खरतर-विशेषता यह है कि वाठिया ब्रह्मेच शाह हरखावत वगैरह सब शाखाए लालसिंह के पुत्रों सेहो निकली बतलाते हैं।" ___ कसौटी-कहाँ तो वि० सं० ९१२ का समय और कहाँ ११६७ का समय । कवाड़ शाखा का समय १३४० का है तथा