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________________ मंडोर के प्रतिहार राव रघुराज सं० ११०३ सेज्हाराज संबरराज 1 भवतिराज 1 अखेराज ७ I नाहड़राव ( वि० सं० १२१२ ) (, १६ ) इस में ११०३ से १२१२ तक कोई भी नानुदेव राजा नहीं हुआ है खरतरों को इतिहास की क्या परवाह है उन को तो किसी न किसी गप्प गोला चला कर श्रोसवालों की प्रायः सब जातियों* को खरतर बनाना है पर क्या करे * विचारे जमाना ही सत्य का एवं इतिहासका आगया कि खरतरों की गप्पे आकाश में उडती फरती हैं जैसे पाटण के बोत्थरों को स्तोत्र देकर दादाजी ने तथा आपके अनुयायियों ने बोत्थरों को अपने भक्त समझा हैं वैसे ही मडेता के चोपड़ो को “उपसग्गहरं पास" नामक स्तोत्र देकर अपने पक्ष में बनालियाहों इस बात का उल्लेख खरतर० क्षमाकल्याणजी ने अपनी पट्टवलियें में भी किया हैं बस ! खरतरों ने इस प्रकर यंत्र - स्तोत्र देकर भद्रिक लोगों को कृतघ्नी बनाये हैं वास्तव में चोपड़ा उपकेश गच्छीय श्रावक हैं । १० -- छाजेड़ वि० सं० ९४२ में आचार्य सिद्धसूरि ने शिवगढ़ के राठोड़राव कजल को उपदेश देकर जैन बनाये कजल के पुत्र धवल और धवल के पुत्र छजू हुआ छजूने शिवगढ़ में भगवान् पार्श्वनाथ का विशाल मन्दिर बनाया बाद शत्रुजयादि तीर्थों का संघ निकाला जिस में सोना की कटोरियों में एक एक मोहर रख लेख दी इत्यादि शुभ क्षेत्र में करोड़ों रुपये खर्च किये उस छ की सन्तान छाजेड़ कहलाई । vad
SR No.032656
Book TitlePrachin Jain Itihas Sangraha Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year
Total Pages26
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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