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( १५ ) नन्नप्रभसूरि प्रतिबोधित कोरंटगच्छ के श्रावक हैं। क्रिया के विषय मे अहां जिसका अधिक परिचय था वहां उन्होंकी क्रिया करने लग गये थे पर बोत्थरों का मूलगक्छ तो कोरंटगच्छ ही है। _____९-चोपड़ा-वि० सं० ८८५ में आचार्य देवगुप्तसरि ने कनौज के राठोड़ अडकमल को उपदेश देकर जैन बनाया कुकुम गणधर धूपिया इस जाति की शाखाए हैं
। "खरतर यति रामलालजी चोपड़ा जाति को जिनदत्तसरि और श्रीपालजी वि० सं० ११५२ में जिनवल्लभ सूरि ने मंडौर का नानदेव प्रतिहार-इन्दा शाखा को प्रतिबोध कर जैन बनाया लिखा है।" ____कसौटी-अव्वलतो प्रतिहारों में उस समय इन्दा शाखा का जन्म तक भी नहीं हुआ था देखिये प्रतिहारों का इतिहास बसला रहा है कि विक्रम की तेरहवीं शताब्दी में नाहडराव (नागभह) प्रसिद्ध प्रतिहार हुआ उसकी पांचवीं पिढ़ी में राव आम यक हुआ उसके १२ पुत्रों से इन्दा नाम का पुत्र की सन्तान इन्दा कहलाई थी अतएव वि० सं० ११५२ में इन्दा शाखा ही नहीं थी दूसरा मंडोर के राजाओं में उस समय नानुदेव नाम का कोइ राजा ही नहीं हुआ प्रतिहारों की वंशावली इस बात को सावित करती है जैसे कि