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"खरतर यति रामलालजी महा० मुक्ता० पृ० ६८ पर लिखते हैं कि वि. सं. १२१५ में जिनचन्द्रसूरि ने धांधल शाखा के राठोड रामदेव का पुत्र काजल को ऐसा वास चूर्ण दिया कि उसने अपने मकान के देवी मन्दिर के तथा जिनमन्दिर के छाजों पर वह वास चूर्ण डालते ही सब छाजे सोने के हो गये इस लिये वे छाजेड़ कहलाये इत्यादि ।” ___ कसौटी-वासचूर्ण देने वालों में इतनी उदारता न होगी या काजल का हृदय संकीर्ण होगा ? यदि वह वासचूर्ण सब मन्दिर पर डाल देता तो कलिकाल का भरतेश्वर ही बन जाता ? ऐसा चमत्कारी चूर्ण देने वालों की मौजूदगी में मुसलमानों ने सैकड़ों मन्दिर एवं हजारों मूर्तियों को तोड़ डाले यह एक आश्चर्य की बात है खैर आगे चल कर राठोड़ो में धांधल शाखा को देखिये जिनचन्द्र सूरी के समय (वि० सं० १२१५) में विद्यमान थी या खरतरों ने गप्प ही मारी हैं ? राठोड़ों का इतिहास डंका की चोट कहता है कि विक्रम की चौदहवी शताब्दी में राठीड़ राव बासस्थानजी के पुत्र धांधल से राठोड़ों में धांधल शाखा का जन्महुश्रा तब वि० १२१५ में जिनचन्द्रसूरी किसको उपदेश दिया यह गप्प नहीं वो क्या गप्प के बच्चे हैं। . ___११- बाफना-इनका मूल गौत्र बाप्पनाग है और इसके प्रतिबोधक वीरात ७० वर्षे प्राचार्य रनप्रभसूरी हैं नाहाट जांघड़ा बेवाला दफ्तरी बालिया पटवा वगेरह बाप्पनाग गौत्र की शाखाए हैं।
"खरतर यति रामलालजी मा० मु० पृ ३४ पर लिखते है कि धारानगरी के राजा पृथ्वीधर पवार की सोलहवीं पिदि पर जवम और सब नामके दो नर हुए वे धारा से निकल जालौर फते कर वहाँ गज करने लगे xxनिनवल्लभ सूरि ने इनको विजययंत्र दिया था जिनदतसूरिने इनको