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भूमिका. गुलजार था । समुद्र के दूर चले जाने से तले की रेत रह गई जो रेगिस्तान की बेरह हो गई। जिसको भाज थली कहते हैं। .
ऐतिहासिक अनुसंधान से मालूम हुमा है कि पूर्व जमाने में यहाँ पँवारों का राज्य था । प्रसिद्ध भी है-" पृथ्वी तणा पवार, पृथ्वी पँवारों तणी" |
जिस प्रकार यह प्रान्त धनधान्य व जन समुदाय से बढ़ा चढ़ा परिपूर्ण था उसी तरह सदुपदेश के अभाव के कारण धर्म से पतित भी था । क्योंकि वाममार्गियों का यहाँ बड़ा जोर शोर था । राजा और प्रजा सब के सब देवी के उपासक मांसभक्षक और पियकड बन गये थे । व्यभिचार का भी बड़ा प्रचार हो गया था। रसना लोलुपी स्वार्थी मठधारियोंने दुराचार ऐशआराम और हराम के काम करने के लिये कम्मर कस उतारू हो गये थे हिंसा के किले को इतना दृढ बना लिया था कि किसी का इतना साहस नहीं था कि चूं तक भी कहे या सर उठावे।
आज से लगभग २३८८ वर्ष पहले भगवान् पार्श्वनाथ के छढे पट्टधर प्राचार्य श्री रत्नप्रभसूरि अपनी शिष्य मंडली सहित अनेकानेक कठिनाइयों को सहन करते हुए तथा विविध उपसगों
और परिसहों को बरदास्त करते हुए इस मरभूमि के केन्द्र नगर उपकेशपुर में पधारे । क्योंकि डाल पत्तों की अपेक्षा मूल का ही सुधार करना श्रेयस्कर है । आपश्रीने अपनी कठिन तपश्चर्या व आत्मबल के प्रभाव व पराक्रम से उस नगरी के अन्दर के ३८४००० घरों के निवासियों को जैन धर्म की शिक्षा दिक्षा दे
१ उस समय उपकेशपुरमें पांच लाख घरों की वस्ती थी.