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कापरडा तीर्थ । हैं। तथा कई प्राचीन कविताओं में इस समुद्र का वर्णन है, यथा
लाखा जैसा लख गया-ओठा सरीखा अट्ट। हेम हडाउ न आवसी-फिरने इण ज वह ।
अर्थात् हेम नामका बनजारा कहता है कि मरुभूमि में माल की इतनी ज्यादा पैदावारी होती थी कि बनजारे लोग लाखों बालदों द्वारा माल ले जाया और लाया करते थे; परन्तु 'हाकडा' नामक समुद्र के कारण उनको बालद लाने और नेजाने में ज्यादा कष्ट होता था । उसने इस तकलीफ को दूर करने के लिये मार्ग में आनेवाले समुद्र को मिट्टी से भर कर . जल की जगह थल बना लिया था। । दूसरा प्रमाण यह है कि भाज यत्र तत्र गुड़ निकालने
की चर्खियों दिखती हैं वे बतलाती है कि यहाँ पानी की प्रचुरता होनी चाहिये। क्योंकि इतना बड़ा गुड़ का कारोबार बिना ज्यादा पानी के कैसे चल सका होगा।
तीसरा कारण यह है कि समुद्र के किनारे ओस ( उस ) की जगह जमीन पर जो नगर बसाया था उसका नाम उएसपुर रखा गया था। संस्कृत के लेखकोंने उसे उपकेशपुर कहा जो अपभ्रंश होकर आज भोशियाँ कहा जाता है। इन प्रमाणों से सिद्ध होता है कि प्रोशियाँ के पास ही समुद्र मौजूद था और अनेक बहु मूल्य पदार्थों की उपज के कारण यह प्रान्त हरा भरा