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कापरड़ा तीर्थ । जैनी बनाया । वहाँ के लोगों के आत्मतंतु वर्ण, जाति और उपजाति के ऊँच और नीच के भेदभाव तथा मिथ्या रूढियों के कारण छिन्न भिन्न व जर्जर बन चुके थे, उनको संजीवक सम्यक्दृष्टि बना कर · महाजन संघ ' नामक संस्था में एकत्र कर बुझते हुए दीपक को फिर से तेज़ किया जिससे विखरे हुए लोगों का जोरदार संगठन हो गया। सब लोग अहिंसा के मंडे के नीचे आकर साम्यवादी हुए । सूरीश्वरने उनके आत्मकल्याण के हेतु शासनाधीश चरम तीर्थकर भगवान महावीर स्वामी के मन्दिर की प्रतिष्टों करवाई । वह मन्दिर अब तक मौजूद है । आचार्य रत्नप्रभसूरि तथा उनकी दिग्विजयी शिष्यमंडलीने मारवाड़ प्रान्त के कोने कोने में घूम कर मिथ्यात्व, दुराचार और कुरूढियों को समूलनष्ट कर साम्यवाद, शांति, संगठन और सदाचार का साम्राज्य स्थापित किया । सूरिजी का यह प्रयास असीम उपयोगी हुआ। क्यों न हो ? जिन लोगोंने परोपकार के लिये जीवन बलिदान करना ही अपना उद्देश्य बना लिया हो उनके लिये यह कार्य करना सर्वथा शक्य और संभव था।
... महाजन संघ की नींव उदारता पर थी अतः संघ की खूब अभिवृद्धि हुई । विक्रम की चौथी और पांचमी शताब्दी तक तो संघ का क्षेत्र प्रायः मारवाड़ में ही रहा परन्तु बाद में जब महाजन लोग व्यापारार्थ देश देशान्तरों में आने जाने लगे तब से अन्य प्रान्तों में भी अपनी दुकानें जमाने लगे दूसरा यह भी १ इस प्रतिष्ठा का समय वीर निर्वाण के पश्चात् ७० वर्ष का था.