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द्वार भौर प्रतिष्टा ।
मंगल बरत रहे थे । आठ दिन तक हर्षोत्साह पूर्वक भट्ठाई महोत्सव मनाया गया । जिसके अपूर्व ठाठ की शोभा देखने से ही बन आती थी । लोगों के चित्त में परम हर्ष का उल्लास प्रकट हो रहा था । वीसलपुरादि भिन्न भिन्न ग्रामों के भावकों की और से स्वामित्रात्सल्य और पूजा-प्रभावना होती थी । प्रतिष्ठा का असीम प्रभाव पड़ रहा था । जो लोग पहले इस जिनालय के विपक्ष में थे वे भी प्रतिष्ठा के अतिशय से इसके भक्त हो गये । क्यों न हो, धर्मका प्रभाव ही ऐसा होता है । इस मन्दिर के जीर्णोद्धार में अब तक लगभग एक लक्ष रुपये खर्च हो चुके हैं । यदि अवशेष काम की पूर्ति श्रब कराई जाय तो यह काम लगभग २० - २५ लब रुपये खर्च करने से होगा । परन्तु इस समय की आर्थिक स्थिति को देखकर केवल प्रत्यावश्यक जीर्णोद्धार का कार्य ही करवाया जाता है । अतः जैन समाज धनी मानी और उदार हृदय दानवीर नररत्नों को चाहिये कि ऐसे प्राचीन ऐतिहासिक स्थलों के जीर्णोद्धार में सहायता पहुंचा कर अनंत पुन्य को अवश्यमेव उपार्जन करें ।
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इस पवित्र तीर्थ के जीर्णोद्धार व प्रतिष्टा के कार्य में जिन जिन महानुभावोंने रुचिपूर्वक लाभ उठाया है उनकी सुवर्ण नामावली यहाँ पर आदर पूर्वक लिख कर हम इस लेख को समाप्त करते हैं। आशा है अन्य धर्मप्रेमी जन भी अपने हृदय में एसी ही भावना उत्पन्न करेंगे ।