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सूरीश्वरजीका प्रयत्न |
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टित हुई । हाय, हमारे तीर्थों की आज यह दशा ! आपने मन ही मन दृढ संकल्प किया कि बिना इस तीर्थ का जीर्णोद्वार कराये में गुजरात में प्रवेश नहीं करूंगा । दृढ प्रतिज्ञ श्राचार्य - श्रीजी अपने वचन पर तुले रहे । यों तो आपने और भी कई तीर्थो का जीर्णोद्धार करवाया था परन्तु वहाँ तो सब साधन आपको अनुकूल थे । द्रव्य सहायकों की भी पुष्कलता थी। जिससे उन तीर्थों का जीर्णोद्धार सानन्द समाप्त हुआ था; परन्तु यहाँ का वातावरण तो कुछ और ही था । जीर्णोद्धार के साधनों को यहाँ जुटाना जरा टेढी खीर थी । कार्यकर्त्ताओं की शिथिलता, द्रव्य का अभाव, जैनियों की बस्ती का उस ग्राम में कम होना आदि कई बाधाएँ उपस्थित थी । दशा यहाँ तक सोचनीय थी कि आपके ठहरने के लिये भी कोई स्थान नहीं था । यहाँ तक कि आपको कई बार तम्बू और साईवान में ही रहने को स्थान मिला। यह मन्दिर जैनेतर जनता के हस्तगत होनेवाला था । श्राचार्यश्री की पक्की लगन को देखकर उनके जी में यह विश्वास हो गया कि अब तो यहाँ का जीर्णोद्धार अवश्य हो के रहेगा । कापरड़ा जी की आसपास की जैनेतर जनताने इनके विपक्षमें प्रांदोलन करने के लिये अपना जोरदार संगठन किया । सिवाय श्राचार्यश्री की शक्ति के और किस की सामर्थ्य थी कि उनके समक्ष ठहर सके । विपक्षियोंने अधिक विघ्न उपस्थित किये । वादानुवाद इतना बढ़ गया कि अन्त में इसका एक मुकदमा चला ।