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________________ कापरड़ा तीर्थ । हैं। और ऐसे महत्व के कार्य पर श्रीसंघ का लक्ष्य तक नहीं। यह कितनी सोचनीय बात है। आपने इस प्रयत्न में तीर्थोदार प्रेमी सेठ लल्लुभाई को, जिन्होंने करेडाजी तीर्थ के जीर्णोद्धार में अत्यधिक रुचिपूर्वक सहायता कीथी, इस तीर्थ की तात्कालिक आवश्यक्ताएँ लिखी । इस पर भाग्यशाली लल्लुमाई सेठने उमंगपूर्वक आठ दस हजार रूपये इस तीर्थ की सहायतार्थ ( जीर्णोद्धार में ) लगाये। परन्तु जहां जीर्णो द्वार के सांगोपांग कार्य के लिये लाखों रूपइयों की आवश्यक्ता है वहां इतने द्रव्य से क्या गरज सर सकती है। तथापि सेठजी व पन्यासजीने इस कार्य को प्रारम्भ करके आवश्यक्ता के अवसर पर अच्छी सहायता पहुंचाई जिसके लिये हमें उपयुक्त दोनों व्यक्तियों का हृदय से आभार मानना चाहिये. जीर्णोद्धार का कार्य प्रारम्भ हो गया था परन्तु अधूरा काम होने से पहले का सब किया कराया जीर्णोद्धार का भी सफाया होने लगा। टीमें इत्यादि टूटने लगी और यह जीर्ण मन्दिर गिरने की हालत में हो गया। उस समय कुदरतने एक व्यक्ति के हृदय में जीर्णोद्धार कराने की भावना पुनः उत्पन्न की । यह व्यक्ति थी जैन शासन के उज्ज्वल सतारे तीर्थोद्धारक प्रबल प्रतापी जैनाचार्य श्री विजयनेमिसूरीश्वरजी महाराज । आपकी शुभ द्रष्टि इस तीर्थ की और हुई जब आपने स्वयं पधार कर इस मन्दिर को देखा तो आपके रोमांच खडे हो गये । सहसा आपके अन्तःकरण से यह ध्वनि प्रस्फू
SR No.032646
Book TitlePrachin Tirth Kapardaji ka Sachitra Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1932
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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