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माशातना का फल.
पदार्थों की मक्ति से मोक्ष जैसी दुर्लभ वस्तु प्राप्त होती है, उनके अनादर करने से जो कुछ अनिष्ट न हो जाय वही थोड़ा है। इस बात को स्वीकार करने में संदेह को कहीं स्थान नहीं हो. सकता । ऐसी आशातना से कापरडाजी ही नहीं वरन् समस्त मारवाड़ प्रान्त में जहाँ जहाँ देवद्रव्य और देवस्थान की पाशातना हुई है वहां यही हाल हुआ है। जो हमें प्रत्यक्ष दिखाई देरहा है। वि० सं० १९४४ तक तो कापरड़े में ४० घर महाजनोंके लेखकने अपनी आंखो से देखे हैं परन्तु इस समय तो केवल १ घर ही रहा है। क्या भव भी जैन समाज चश्मपोशी करेगा ? क्या जैन समाज का यह स्पष्ट कर्तव्य नहीं है कि वह अपने परम पुनीत तीर्थ की पाशातना को मिटाकर सेवा, पूजा, भक्ति और उपासना में कमर कस कर कार्य कर अपूर्व सुख का अनुभव कर अपनी वर्तमान पतित दशा से निकल कर अभ्युदय की और अपना कदम बढ़ावे । दूर जाने की भी ज़रूरत नहीं हैं। अपने पडौसी गोड़वाड प्रान्त की प्रगति की
और ही दृष्टिपात करियेगा तो आपको मालूम होगा कि वे अपने तन, मन, धन से जिन मन्दिरों और मूर्तियों की सेवा, पूजा और उपासना करते हैं । इतना ही नहीं वे तो अपने देवस्थानों के लिये जीवन तक बलिदान करने को कटिबद्ध हैं। यही कारण है कि उनके यहाँ सुख के समुद्र भरे पड़े हैं। हमारा यह कहना व्यक्तिरूपसे नहीं है परन्तु सामुदायिक अपेचा में है। अस्तु.