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कापरड़ा तीर्थ ।
नाम से अनेक मन्दिर और मूर्त्तियों स्थापित हुई थी वहाँ अब लोग उनके प्रति अनादर भाव दर्शाने के साथ साथ अवगुणवाद भी बोलने लगे । जैन मुनियों तीर्थो की और मन्दिरों की श्राशातना करना एक वज्र पाप है । कहा है" तीरथकी आशातना नवि करिये,
हाँ रे नवि करिये रे नवि करिये; धूप ध्यान घटा अनुसरिये -
हाँ रे तरिये संसार - तीरथकी ० आशातना करतां थकां धन हाणी |
हाँ रे भूख्यां न मिले अन्न पाणी; हाँ रे काया वली रोगे भरांणी -
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हाँ रे इण भवमें एम — तीरथकी ० परभव परमाधामीने वश पड़शे,
हाँ रे वैतरणी नदीमें भलसे, हाँ रे अग्निने कुण्डे बलसे,
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हाँ रे नाव शरणो को — तीरथ की ० ( नीना वे प्रकारनी पूजा ढाल ११ वीं )
सच जानिये जैन मन्दिरों की, मूर्तियों की और तीर्थों की आशातना एक क्षयरोग के समान है । जिस प्रकार चय का रोगी यकायक न मरकर धीरे धीरे क्षीण होकर मरता है उसी प्रकार भाशातना करनेवाले व्यक्ति, ग्राम, समाज, नगर या राष्ट्र शनैः शनैः हीनावस्था को पहुंचता है। क्यों कि जिन