SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 53
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कापरडा तीर्थ । मिलता था परन्तु जब से नवीन प्रबंध (Settlement) विभाग का कार्य प्रारम्भ हुआ तब कई डोलिये खालसे हो गई । इस । समय यह भूमि भी खालसे होगई । उस समय कापरडे मन्दिरजी के प्रबंधकों में कोई ऐसा नहीं था जिसने इस विषय में पेरवी की हो तथापि मासिक सहायता के ३०) मिलते रहे। परन्तु जब राज्य की और से देवस्थानों की सहायता घटाई जाने लगी तो इस मन्दिर की सहायता भी घटाकर १५) करदी गई। बाद में इसमें और कमी की गई। ७॥) और ५) के पश्चात् यहां तक हुआ कि मासिक सहायता बिन्कुल बंद करदी गई है। अब तक यह सहायता बंद है। परिकर के शिलालेख से यह भी पाया जाता है कि प्रतिष्टा के बाद भी थोडा बहुत काम अवश्य हुआ है परन्तु यह था बहुत थोडा क्योंकि जो मूख्य काम अधुरा रह गया था वह आज पर्यंत मी ज्यों का त्यों अधूरा पड़ा हुआ है। जिनालय की प्रतिष्टा के पश्चात् केवल थोडे समय तक ही वह घनी आबादी रही थी। पावादी घटने का कारण यह था निमन्दिरजी प्रतिष्टा के लग्न के मुहूर्त में लोगोंने गडबडी करदी थी। दूसरे शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि भवितव्यता ही ऐसी थी। परन्तु यह तो निश्चयपूर्वक कहा जा सकता है कि भंडारीजी के बाद में ऐसा कोई भी भाग्यशाली पुरुष रत्न उत्पन उस नगरी में नहीं हुआ था जिसने कि उस अधूरे रहे कार्य को पूर्ण करा दिया हो। पुरानी ख्यातों और वंशावलियों को
SR No.032646
Book TitlePrachin Tirth Kapardaji ka Sachitra Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1932
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy