________________
मन्दिर की प्रतिया।
देना पावश्यक है कि यद्यपि प्रतिष्टाकार की यह हार्दिक इच्छा थी कि यह कार्य शुभलम में हो परंतु भवितव्यता भी बलवान होती है। लोगों की बेदरकारी कहिये अथवा भवितव्यता का नाम लीजिये परन्तु प्रतिष्टा निश्चित शुभला में न हो सकी तथापि भंडारीजी तो भाग्यशाली थे जिन्होंने प्रतिष्टा करवाके अपने मानवजीवन को सफल किया। इस भीमकाय विशाल जिनालय का प्रभाव केवल जैनियों पर ही नहीं अपितु राजा महाराजाओं पर भी हुमा जिसके परिणाम स्वरूप जोधपुर दरबार की और से इस मन्दिरजी के लिये स्थावर मिन्कत के तौरपर कई बीघा भूमि प्राप्त हुई । इस भूमि की उपज की आय से मन्दिर का खर्च सुविधापूर्वक चलता था। इस भूमि के अतिरिक्त राज्य की ओरसे मासिक ३०) भी इस मन्दिरजी के लिये मिलते थे। यह भूमि और ३०) की मासिक सहायता सर प्रतापसिंहजी से पहले तक राय लाखण सन्ताने भंडारी गौत्रे अमरापुत्र मानाकेन भार्या भक्तादे पुत्र रत्न नारायण नरसिंह सोडा पौत्र ताराचन्द खंगार नेमिदासादि परिवार सहितेन श्री कपटेहट के स्वयंभू पार्श्वनाथ चैत्य श्री पार्श्वनाथ....इत्यादि
"श्री कापरडाजी तीर्थ." १ इस मन्दिर के पट्टे परवाने व सनद भादि के कागजात भाजतक जेतारण के भंडारियों के पास मौजूद हैं।