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कापरड़ा तीर्थ । भविष्टायक सजग हैं । जो भक्त इन पर दृढ विश्वास और पूर्ण श्रद्धा रखते हैं उनके मनोरथ अवश्य सफल होते हैं।
भंडारीजी तो पहले ही से इस बात की प्रतीचा में थे कि कब मुझे मूर्ति उपलब्ध हो और कितना शीघ्र मैं उसे प्रतिष्टित करवा के अपने मानव जीवन को सफल करूं। उनके शुभ माग्योदय से सर्वांग सुन्दराकार दिव्य मनोहर और अतिशययुक्त मूर्ति प्राप्त हो गई जिससे सर्व संघ और भंडारीजी के उत्साह और उमंग में कई गुना अभिवृद्धि हुई। प्रतिष्टा के लिये भावश्यक तैयारियों बडे जोर शोर से की जाने लगी । प्रतिष्टा के शुभ अवसर पर निकट और दूर के बहुत से लोग आमंत्रित कर बुलाये गये । उत्साह और हर्ष लोगों के उरमें इतना अधिक प्रस्फुटित हुआ कि वे एक पल की देर भी दिवस या वर्ष जितनी जानने लगे। सकल संघ की सम्मति और सहायता से वि. सं. १६७८ के वैशाख शुक्ला १५ सोमवार को बड़ी धूमधाम से प्रतिष्टा का कार्य हुमा । प्रतिष्टा करवानेवाले भाग्यशाली सजनों के नाम आप को निम्नलिखित शिलालेख से विदित होंगे । यहाँ यह भी बता
१ इस मन्दिरजी कि प्रतिष्टा विषय का शिलालेख बीलाडा की वही से प्राप्त हुआ है। श्री प्रतिमाजी पर के शिलालेख की नकल.. ..
" संवत् १६७८ वर्षे वैशाख सित १५ तिथौ सोमवार स्वाती महाराजधिराज महाराज श्रीगजसिंह विजयराज्ये उकेशवंशे