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________________ भूमि से मूर्तियों का प्रगट होना । ४१ दर्शनों के लिये श्रातुर है । शीघ्र दर्शन दीजिये । सहसा अधिष्टायक का ऐसा जोरदार परिचय हुआ कि जमीन में से चार मूर्त्तियें प्रकट हुई, जिनके दर्शन कर संघ अति प्रसन्न हुआ । चारों ओर हर्ष ध्वनि कर्णगोचर होने लगी | विविध प्रकार के द्रव्यों से पूजा कर मूर्त्तिएँ मन्दिर में ले आए । यद्यपि मूर्त्तिएँ उस समय चार प्रगट हुईथी जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है परन्तु मन्दिर में केवल स्वयंभू पार्श्व की एक मूर्ति की ही प्रतिष्टा हुई। इसका कारण कदाचित् यह होगा कि एक मूर्त्ति बड़ी और परिकर संयुक्त थी और शेष मूर्त्तियें छोटी होगी इस पर श्री संघ ने यह उचित समझा होगा कि चौमुखीजी के मन्दिर में तो चार मूर्त्तियें एक ही प्रकार की स्थापित होनी चाहिये श्रतः एक तो प्रतिष्टित करावा दे | और शेष के लिये यह निश्चय कर लिया होगा कि इसी प्रकार की तीन मूर्त्तियें बनवाई जावें और बाद में अंजनशलाका करा के प्रतिष्ठा करादी जाय । ऐसा होना बहुत कुछ सम्भव मालूम होता है। शेष तीन मूर्त्तियों के लिये ऐसा कहा जाता है कि एक सोजत, दूसरी पीपाड़ और तीसरी जोधपुर के जैन मन्दिरों में स्थापित की गई। ये तीनों -- मूर्तियों आज पर्यंत इन तीनों स्थानों पर विद्यमान हैं। ऐसा मालूम होता है कि ये चारों मूर्तियों एक ही वर्ण (नीला) की तथा एक ही समय की बनी हुई हैं । इन चारों मूर्तियों का चमत्कार प्रकट है । इस का कारण यह है कि इनके
SR No.032646
Book TitlePrachin Tirth Kapardaji ka Sachitra Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1932
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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