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श्रीस्वयंभू पार्श्वनाथ की मूर्ति ।
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भंडारीजी प्रतिष्ठा की तैयारी में लग गये । प्रथम प्रश्न मूर्त्ति का ही उपस्थित हुआ । यद्यपि उस ग्राम में पहले कई मन्दिर थे परंतु यवनों द्वारा सब के सब मन्दिर नष्टभ्रष्ट कर दिये गये थे। लोगोंने वैसी आफत की अवस्था में मूर्तियों को भूमि के अन्दर छिपा कर सुरक्षित रख लिया था। इस प्रकार उस ग्राम में भूमि के अन्दर तो कई मूर्तियों विद्यमान थी पर किसी को यह मालूम नहीं था कि कहाँ पर है। उन्हीं दिनों उस ग्राम में एक घटना हुई जो इस प्रकार है: - एक कुमारी कन्या को रात को स्वप्न आया कि ग्राम के बाहर अमुक केर के झाड़ के पास एक गाय का दूध अपने आप श्रव हो जाता है, उस जमीन के नीचे स्वयंभू पार्श्वनाथ प्रभुकी मूर्त्ति है वह कल बाहर निकलेगी । ऐसा उस कुमारी कन्या को अधिष्टायिकने स्वप्न दिया तदन्तर उसकी आंख खुल गई । उस कन्याने सारा वृतान्त अपने पिता को कह सुनाया। पिताने यह समाचार तुरन्त जाकर भंडारीजी व यतिजी को कहा । भंडारीजी तो यही चाहते थे । तुरन्त संघ को एकत्र कर गाजेवाजे सहित संकेत के स्थान पर पहुँचे । विविध प्रकारों से भगवान् की स्तुतियें कर लोग प्रार्थना करने लगे कि हे प्रभु ! संघ