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गुरुकृपा का चमत्कार.
(१५) आचार्य सिद्धसूरिने पंजाब में पांच पीरों को साधकर यवनोंको अपूर्व चमत्कार दिखाया । आज पर्यन्त वह सिद्ध पीर के नामसे पूजे जाते हैं।
(१६) आचार्य विजयहीरमरिने बादशाह अकबर को जो प्रतिबोध दिया जिसने एक वर्षमै छ मास जीवदया पालना या तीर्थों के लिये फरमान और आगरा का ज्ञानभण्डार आचार्य को अर्पण किया वह सब को ज्ञात है इत्यादि।
इस प्रकार के और कई उदाहरण बताए जा सकते हैं इतनाही नहीं बलके जिनके लिये एक स्वतंत्र ग्रंथ भी लिखा जासकता है । पर यहां तो इतना बता देना ही काफी होगा। भाग्यशाली भानुमलजी पर भी इसी प्रकार गुरु कृपा हुई थी। द्रव्य की बाहुल्यता के कारण मन्दिर की बनावट बहुत उत्तम रखी गई। मंदिर का उठाव और भंडाण तो राणकपुरजी के मन्दिर सदृश ही उठाया गया परन्तु इस मन्दिर में यह विशेषता थी कि जहां राणपुरजी का मन्दिर एकान्त में एक पहाड की घाटी में है परन्तु यह मन्दिर एक बडे हमवार मैदान में है यही कारण है कि यह मन्दिर उससे भी विशेष आकर्षक है। यह भीमकाय ऊँचा गगनचुम्बी मन्दिर बहुत दूर ही से यात्रियों और पथिकों का चित्त अपनी और सहज ही में खींच सकता है । यद्यपि कार्य बहुत उतावल से किया जा रहा था तो भी तीन वर्ष के अथाग परिश्रम से सिर्फ मन्दिरजी का मूल गम्भारा तथा चारों खण्डके बारह गोख, ऊपर के शिखर के तीन खण्ड एवं सात खण्ड