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________________ कापरड़ा तीर्थ । मूल गुबारे के चारों ओर, चार विशाल रङ्गमएडप रास पुतलियों युक्त तैयार हो पाए । भागे चारों और देहरियों का , नकशा हो रहा था । मन्दिर के मुख्य द्वार पर चार पांच . देहरियों भी तैयार हो गई थी। रंग मण्डप के आगे खेला मएडप के बडे २ स्थम्भ के भी पाये लग गये थे । कार्यकर्ताओं कर्मचारियों और शिल्पकार एवं श्रमजीवियों का उत्साह भी निरन्तर वृद्धिगत हो रहा था। ___ परन्तु होनहार बलवान है। 'बंदा चिंते बहु तेरी पर होनहार सो होय '-ठीक ऐसा ही हुआ। मनुष्य कुच्छ ओर कल्पना करता है और प्रकृति देवी कुछ और ही विधान रचता है । घटना यह हुई कि एक दिन भंडारीजी किसी कार्यवशात् जोधपुर पधारते थे तब आपने अपने सुपुत्र नरसिंह को बुलाकर कहा कि यदि मुझे कदाचित अधिक समय लगजाय तो पिछला सारा प्रबन्ध करते रहना । यह कुाञ्जयों का गुच्छा संभालो परन्तु एक बात मत भूलना । कभी भी इस थैली को उल्टी करके रुपये मत निकालना । ज्यों ज्यों आवश्यक्ता हो इस थैली में से निकालकर श्रमजीवियों को वेतन चुकाते जाना । भंडारीजी का पुत्र नरसिंह स्वयं चतुर था उसके लिये इतनो संकेत मात्र पर्याप्त था । तथापि भंडारीजी को शांति प्राप्त न हुई । नरसिंह के भरोसे सारा कार्य छोड़कर आप जोधपुर आ तो गये परन्तु मनमें सदैव यही खटका बना रहा कि न जाने नरसिंह कुतुहल वश ही थैलीको उल्टी कर बैठे या और कुछ घटना हो जाय । किसीने ठीक कहा है
SR No.032646
Book TitlePrachin Tirth Kapardaji ka Sachitra Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1932
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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