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कार्यका पारंभ । में आसानी रहे । अन्त में देखते दिखाते राणकपुर पाए तो इनका हृदय प्रफुल्लित हुआ । राणकपुर का भीमकाय विशाल प्रासाद आचार्य सोमसुन्दर सूरि के अध्यक्षता में गोडवाड़ के चतुर सोमपुरोंने पांचवे देवलोक स्थित नलिनीगुन्म नामक विमान के आकार के आधार से बनाया। मन्दिर की बनावट देखकर जोराजी के मुख से सहसा यह शब्द निकले-" धन्य है ! धना पोरवाल को कोटिशः धन्यवाद है। मन्दिर बनानेवाले कला कौशलज्ञ सोमपुरे को भी धन्य है । मन्दिर स्वर्गतुल्य है।" उन्होंने सोचा यदि मेरे हाथ से भी ऐसी ही दिव्य रचना बन जाय जो मेरा मानव जीवन सफल हो । ध्यानपूर्वक वहां का नक्शा लेकर वे सीधे कापरड़े चले आए क्यों कि अब और नमूना देखना व्यर्थ था।
जोराजीने सारा वृतान्त भंडारीजी को कह सुनाया। तब भंडारीजीने कहा यदि वैसा ही मन्दिर बनादें तो आपकी
और मेरी विशेषता ही क्या ? सोमपुरेने उत्तर दिया कि अधिकता होना तो ज्ञानी जाने परन्तु मेरा तो ऐसा विचार है कि मैं उस मंदिर से भी एक मंजील ज्यादा बना दूं अर्थात् जहां राणकपुरजी के मन्दिर में तीन मजले है तो कापरड़े में चार होने चाहिये । परन्तु...........सोमपुरा पूरी बात भी मुख से न निकाल पाया कि भंडारीजीने उसको आज्ञा देदी कि ज़्यादा मैं कुछ नहीं कहता मंदिर अपूर्व होना चाहिये। तदनुसार सं. १६७५ में यह शुभ कार्य प्रारम्भ हुआ।