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________________ कापरड़ा तीर्थ । यतिजीने कहा कि इतने रुपये तो इस कार्य के लिये अभी पर्याप्त है । यतिजीने उस शुभ वेला में थैली के उपर वर्द्धमान - विद्या से सिद्ध किया हुआ ऋद्धि-सिद्धि-वृद्धि-संयुक्त वासक्षेप डाला । यतिजीने कहा इतना ध्यान रखना कि इस थैलीको मत उलटना | भंडारीजीने गुरुवचन शिरोधार्य कर उस ग्राम में गये । एक मकान लेकर कुछ समय तक भंडारीजी उसी ग्राम में रहे और मन्दिर बनवाने के लिये यतिजी से समय समय पर परामर्श लेते रहे ! सुघड़ सोमपुरों को बुलाकर शुभ मूहूर्त में मन्दिर की नींव डाली गई । इसके बाद भंडारीजीने अन्य सोमपुरों को बुलाकर उनसे कहा कि यहां ऐसा विशाल और अद्भुत मन्दिर बनाओ कि जैसा आसपास में कहीं न हो । सोमपुराने कहा कि अच्छा हो यदि हम कुछ दिनों के लिये देशाटन कर श्रावें ताकि हम दूसरे कई मन्दिरों को देख | भंडारीजीने आज्ञा देदी । कापरड़े में उस समय जोराजी अच्छे शिल्पज्ञ सोमपुरे थे जिनको देवी का इष्ट भी था । ये ६ मास तक घूम घूम कर अनेक मंदिरों की बनावट का ध्यानपूर्वक निरीक्षण करते रहे और जहां कुछ कारीगरी देखी नोट भी करते रहे ताकि नकशा तैयार करने १ जोराजी सोमपुरा के वंशजों में इस समय चाणोद के कस्तूरजी आदि सोमपुरे हैं जो इस समय कापरड़ाजी के जीर्णोद्वार में काम करते हैं ।
SR No.032646
Book TitlePrachin Tirth Kapardaji ka Sachitra Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1932
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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