________________
भंडारीजी की विजय ।
भंडारीजीने गुरुवचन श्रवण कर कहा 'तथास्तु' | तं गुरुमुख से मांगलिक संदेश सुन तालाब पर आकर सब के साथ भोजन कर रवाने हो निश्चित समय पर ये जोधपुर पहुंच गये ।
तात्कालीन मारवाड़ाधिपति महाराजा श्री गजसिंहजी थे जिनकी न्यायप्रियता इतिहास प्रसिद्ध है । उन्होंने भंडारीजी के विषय में खानगी पूछताछ की तब भंडारीजी को निर्दोष पाया । उधर भंडारीजी भरे दरबार में प्रविष्ट हुए । इन्होंने मुजरा किया तब दरबारने इनकी प्रशंसा करते हुए ५००) रजत मुद्राओं का पुरस्कार प्रदान किया तथा वेतन में भी वृद्धि की। साथ ही में इनका कुछ कुरब भी बढ़ा दिया । यह घटना देखकर दुश्मनों के अरमान मन ही मन रह गये । वे ऐसे पे कि काटो तो खून नहीं । अब वे मन ही मन पूरा पश्चाताप करने लगे और साथ में यह भी भय उत्पन्न हुभा कि दरबार हमारे को न मालूम क्या दंड देंगे ।
भंडारीजी पुरस्कार प्राप्त कर मन ही मन प्रभुपूजा की प्रशंसा करने लगे । दरबार साहबने आज्ञा दी कि जो दूत इन्हें लेनेकों गये थे वेही पहुंचायें । भंडारीजी सम्मान उपार्जन कर वापस लौटे। साथ में आनेवाले दूत सोचने लगे कि सत्यता और प्रभुदर्शन का प्रत्यक्ष परिणाम हमने आज देख लिया । भंडारीजी जोधपुर से चलकर सीधे कापरड़े पहुंचे वहां पहुंच प्रथम उन्होंने प्रभु के दर्शन किये तत्पश्चात् गुरुराज को