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बापरखा वीर्य चिंता से संसार का वातावरण नित्य श्रोतप्रोत है। संयम लेकर भगवान् की आज्ञानुसार कर्त्तव्य पथपर चलना-इसके बराबर कोई सुख है ही नहीं । परन्तु यदि कोई आत्म संयम पालन में असमर्थ हो और गृहस्थावस्था में ही न्याय और नीतिपूर्वक कार्य करता हुआ जीवन बितावे तो वह भव्य पुरुष अपने सतत् उद्योग में कर्म-कलुष को ज़रज़र करता हुमा भवान्तर में मोक्षपद का अधिकारी हो सकता है-इसमें कोई संदेह नहीं है । भंडारीजी सुख और दुःख ये पौगलिक वस्तुएँ हैं । जो जैसा कर्म करता है उसे वैसा ही फल अवश्यमेव भुगतना पड़ता है।"
मंडारीजी-"गुरुजी! मैंने समझ बूझकर किसी प्राणी पर कोई अत्याचार नहीं किया है। न जाने किस भव के कर्मों का उदय हुआ है जिसके कारण कि आज मैं निरपराधी होते हुए भी बन्दी की नाई जोधपुर लेजाया जा रहा हूँ। अपराधी का दंडित होना तो न्याय संगत है परन्तु धर्मद्वेषियों की करतूत के कारण सुज्ञ निर्दोषी पर क्या जुन्म गुजर रहा है इसी बात की मुझे चिन्ता है।"
यतिजीने अपने स्वरोदय के हिसाब से कहा-"मंडारीजी घबराने की कोई बात नहीं है। यह निश्चयपूर्वक धारणा रखिये कि सत्य की अन्त में अवश्य विजय होगी। मेरा यह भांतरिक साधुवाद है।"