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________________ मंडारीजी का संवाद | भंडारीजी यह शुभ समाचार सुन प्रफुल्ल चित्त हो सर - दारों के नायक को साथ ले तुरन्त नगर में पधारे। उपाश्रय में पहुँच यतिजी को नमस्कार कर परम पुनीत शान्त मुद्रावाली मनोहर भगवत् प्रतिमा के दर्शन कर द्रव्य और भाव से पूजा की। बाद में गुरुवर्य को विधिपूर्वक वंदना कर. रवाना होने लगे । यतीने धर्मलाभ देकर पूछा - " भंडारीजी आप इस समय कहाँ से पधार रहे हैं " भंडारीजी - " महाराज मैं जेतारण से आया हूँ किसी कार्यवश जोधपुर जा रहा हूँ। " यतिजी - " भंडारीजी आपके मुख पर उदासीनता क्यों दिखाई दे रही है। क्या मेरा अनुमान ठीक है ? " भंडारीजी - " गुरु महाराज - आप लोगों को धन्य है कि आप असार- दुखों के आगार - संसार का त्याग कर आत्मकल्याण के कार्य में स्वतंत्रतया निरत हैं। मुझ से पामर प्राणी संसार के दुःख रूपी कोल्हू में रातदिन पिल रहे हैं तो भी सचेत नहीं होता । सदैव कोई न कोई आपदा लगी ही रहती है । वह शुभ दिन कब उदय होगा जिस दिन मैं इन मिथ्या भ्रमों से उन्मुक्त होकर मोक्षपथका पथिक बनूँगा । यतिजी - " भंडारीजी ! आपका कथन अक्षरशः सत्य एवं तथ्य है । संसार का तो यही गोरखधंधा है । क्लेश और
SR No.032646
Book TitlePrachin Tirth Kapardaji ka Sachitra Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1932
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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