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________________ कापरड़ा तीर्थ । भंडारीजी के इन ठोस वचनों को सुनकर उनके हृदयपर पूरा प्रभाव पड़ा । जो इससे पहले भंडारीजी को बदनीयत से देखते थे वे ही इन्हें पूज्य दृष्टि से निहारने लगे। उन्हें यह विश्वास हो गया कि इन दृढ़ प्रतिज्ञ पुरुष का हर्गिज बाल बांका न होगा। भंडारीजी की सत्य निष्ठा से दरबार का क्षणिक क्रोध काफूर हो जायगा। ___“ सरदारो, क्याँ मेरी प्रतिक्षा करते हो, शीघ्र भोजन कर लीजिये। "यह कब संभव है कि आप तो निराहार रहें और हम अपने पापी पेटके खड्डे को भरें। हम नगर में जाते हैं और शीघ्र ही मन्दिर की तलाश कर आपके पास आते हैं"। ___" मैं अपने लिये आपको कष्ट पहुंचाना उचित नहीं समझता । मैं स्वयं नगर में चला जाता हूँ"। "आप हमारे पूजनीय पुरुष हैं । यहीं विराजिये । हम अभी लौटकर आते हैं"। “खैर, जैसी आपकी इच्छा"। इतना सुनकर सरदारों का नायक नगर में गया और यह पता लगा आया कि एक यतिजी के उपाश्रय में भगवान् की मूर्ति स्थित है। पीछा तालाब पर आकर उसने यह समाचार भंटारीजी को मनाया |
SR No.032646
Book TitlePrachin Tirth Kapardaji ka Sachitra Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1932
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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