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________________ कापडा तीर्थ । सरदार लोग-" इसका क्या कारण है ? यह कैसे . हो कि आप तो भूखे रहे और हम भोजन करले "। ___ " मैं जैनी हूँ। मैंने जीवनभर के लिये प्रतिज्ञा ली है कि बिना भगवान् के दर्शन किये किसी दिन अन्नजल ग्रहण नहीं करूँगा। यह केवल मेरा ही नहीं पर संसार के प्राणी मात्र का कर्त्तव्य है कि वह अपने इष्ट देव का दर्शन और उपासना करने के बाद ही भोजन करे। ... " भंडारीसा, जब आप दौरे में पधारते हैं उस समय जहाँ मन्दिर नहीं होता है तब भाप क्या भोजन नहीं करते?" "कदापि नहीं। प्रथम तो ऐसा कोई स्थान ही नहीं कि जहाँ महाजनों की बस्ती हो और वहाँ मन्दिर न हो। इतने पर भी कदाचित कहीं पर मन्दिर दो या चार मील की दूरी पर हो तो मैं वहाँ जाकर दर्शन कर लिया करता हूँ और जब मुझे ऐसे प्रान्त में दौरा करना होता है कि जहाँ भासपास में मन्दिर होने की संभावना नहीं हो तो मैं अपनी सेवा साथ में ले लेता हूँ। चाहे मेरे प्राण भले ही चले जाय पर मैं अपनी प्रतिज्ञा को कभी नहीं तोड़ सकता"। “ मंडारी सा-कदाचित् कभी ऐसा भी संयोग हो जाय कि जहाँ आसपास में मन्दिर भी न हो और आपके पास सेवा भी न हो तो क्या आप भूखे रहेंगे। __ "सरदारो-क्या आपने नहीं सुना मैं पहले आपको
SR No.032646
Book TitlePrachin Tirth Kapardaji ka Sachitra Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1932
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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