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भंडारीजी की परीक्षा ।
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हैं । उनके मुंह से हुक्म निकलने की देर थी कि यमदूतों का सा एक समुदाय भंडारीजी को पकड़ लाने के लिये चल दिया जहां मनमाना आधिपत्य का साम्राज्य हो वहां जो कुछ न हो जाय वही थोड़ा है। उन दूतोंने जेतारन पहुँचकर भंडारीजी को दरबारी आज्ञा सुनाई। शत्रुओंने तो कल्पना के किले बांधे थे कि भंडारी चलने से आनाकानी करेगा तो ऐसा करेंगे वैसा करेंगे परन्तु धीर भानुमल्ल ऐसी आक्समिक आज्ञा से कब डरने वाले थे । वे तुरन्त चलने को तत्पर हो गये । और निर्भीकता पूर्वक कहने लगे कि मुझे इस बात की परम प्रसन्नता है कि हुजूरने मुझे याद किया है ।
प्रातःकाल भंडारीजी खाने हुए। दिन चढ़ने लगा | सब को क्षुधाने आ सताया । इतने ही में सामने कापरड़ा नगर का विशाल तालाब दिखाई दिया जो निर्मल जल से परिपूर्ण -हरे, भरे, गुलज़ार नगर की शोभा को द्विगुणित बढ़ा रहा था । भंडारीजी की आज्ञा से सबने उसी तालाब की तीर पर सघन वृक्षों की छाया में डेरा डाला । भंडारीजी के साथ जो लोग आए थे उन्हों ने स्नान कर रास्ते के श्रम को दूर किया तत्पश्चात् वे सब भंडारीजी के पास आकर अनुरोध करने लगे कि भंडारीजी, पधारिये भोजन कीजिये ।
भंडारीजी - " आप सब सरदार भोजन कर लीजिये
मैं इस समय भोजन नहीं कर सकता 1
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