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________________ धार्मिक लम। वह यह था कि इस नगरमें व्यापारियों और जनता की सुविधा के लिये प्रति वर्ष १ बड़ा मेला भरता था जिसमें लाखों रुपयों का क्रयविक्रय और परिवर्तन होता था। यह मेला इतना बड़ा भारी होता था कि इसके लिये एक पूरा महीना नियुक्त था। मेले के एक मास पहले ही खूब तैयारियें की जाती थीं। इस मेलेके कारण ही प्रति वर्ष यहांका कारबार और रोजगार बढ़ रहा था। प्राचीन समय में इस नगर में कितने धर्म स्थान (मन्दिर और उपाश्रय) थे यह तो मालूम नहीं है परन्तु इस समय स्वयंभू पार्श्वनाथ भगवान के मंदिर के अतिरिक्त दो उपाश्रय मौजूद हैं। यत्र तत्र प्राचीन खंडहर मीदिखलाई दे रहे हैं। जिस नगर में जैनियों के सैंकडों घर थे वहां महात्मा और यतियों के ठहरने के लिये कई पोशालों तथा उपाश्रय और उनके साथ जिनालय भी जरूर होंगे। जब यवनोंने धर्माधता के कारण मन्दिरों पर कुठाराघात किया होगा तब यति महात्माोंने मन्दिरों से जिन बिंब लाकर अवश्य अपने उपाश्रयों में स्थापित किये होंगे । क्योंकि जैनियोंने आत्मकल्याण के लिये यह अनिवार्य समझा था कि प्रतिदिन प्रभु दर्शन करके ही श्रम जल ग्रहण करना चाहिये । यह प्रतिज्ञा इस समयमें भी चली भा रही है। सैंकड़ों नहीं हजारों जैनी ऐसे मौजूद हैं जो भोजन करना तो दूर रहा बिना भगवान के दर्शन किये मुंह में पानी भी नहीं डालते । धार्मिक लगन को हृदय में सदा जारी रखने के ऐसे सरल उपाय को वे कब त्याग सकते है।
SR No.032646
Book TitlePrachin Tirth Kapardaji ka Sachitra Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1932
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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