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कापरड़ा तीर्थ । मणों से रक्षित रखने के लिये ये विंच भूमि में सुरचित रखे गये हों । मूर्तियों तो इस प्रकार सुरक्षित की जा सकी होंगी पर मन्दिर तो अवश्य विधर्मियों द्वारा नष्ट भ्रष्ट कर दिये गये होंगे । जो कुछ भी हुआ हो जिन-प्रतिमा के प्रकट होने से यह तो सर्वथा विश्वसनीय है कि यहाँ जैनियों की बस्ती ज़रूर थी। यह तो कदापि सम्भव नहीं है कि जिस नगर में जैनियों के ५०० से अधिक घरों की आबादी हो वहाँ उनके आत्मकल्याण के सुगम साधनरूप मंदिर और उपाश्रय न हों। अर्थात् पुराने जमाने में यहाँ कई मन्दिर उपाश्रय अवश्य थे। . प्राचीन काल में यह नगर अच्छी तरको पर था यहाँ की प्राकृतिक शोभा भी निहारने योग्य थी। नगर चारों ओर से हराभरा और गुलज़ार दिखाई देता था । क्यों न हो जहाँ धनाढ्यों की बसती हो वहाँ इन बातों की क्या कमी ? व्यापार में इस नगर का अच्छा हाथ था। इसके अतिरिक्त रंगाई के कार्य के कारबार में तो यह प्रमुख और प्रसिद्ध था। नमक भी यहां गहरी तादाद में तैयार होता था। यहां नमक एक विशेष प्रकार का होता था जिस की उपादेयता के कारण बहुत मांग रहती थी। यहां का नमक बनजारोंकी बालद द्वारा बहुत दूर दूर तक पहुंचता था। नमक के अतिरिक्त कृषि कला में भी यह नगर पिछड़ा नहीं था। यहां के खारचिये गेहूँ तो विशेषतया प्रसिद्ध थे। नगर की घनी आबादी के कारण तीन थे जो ऊपर बताए जा चुके हैं। परन्तु चतुर्थ कारण भी बड़ा था।