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( ४४ ) सूरि श्री अभयदेवसूरि श्रीजिनवल्लभसूरि श्रीजिनदत्तसूरि श्री - जिनचन्द्रसूरि श्रीजिनपतिसूरि श्रीजिनेश्वरसूरि रित्यादियावत्तपट्टालङ्कारश्रीजिनभद्रसूरि राज्ये श्रीजेसलमेरूमहादुर्गे श्रीचचिगदेवे पृथ्वीशे सति सं० १५०५ वर्षे तपः पट्टिका कारिता जैसलमेर का शिलालेख - प्र० प० पृष्ठ १८६
इस लेख में भी उद्योतनसूरि को खरतरगच्छी होना लिखा है
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चन्द्रकुले श्रीखरतरविधिपक्षे – “ श्रीवर्द्धमानाभिधसूरि राजो, जातः क्रमादर्बुदपर्व्वताग्रे । मन्त्रीवरश्रीविमलाभिधानः, प्राचीकटत् यद्वचनेन चैत्यमित्यादि ॥ १ ॥
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- जैसलमेर का शिलालेख - प्र. प. पृष्ठ २५६
इस लेख में वर्द्धमानसूरि को खरतर होना लिखा है प्रणमीवीर जिणेस रदेव, सारइ सुरनर किन्नर सेव । श्रीखरतर गुरु पट्टावली नाममात्र प्रभणु मन रली || उदयउ श्रीउद्योतनसूरि, वर्द्धमान विद्याभरपुरी । सूरि जिनेश्वर सुरतरु समो श्रीजिनचन्द्रसूरिश्वर नमई ॥ 'खरतर पट्टावली जै. ऐ. का. स. पृष्ठ २२७ खरतर गच्छि वर्द्धमान, जिनेश्वरसूरि गुरो । । अभयदेवसूरि जिनवल्लभजिनदत्तसूरि पवरो ||
ख, प. जै. ऐ. का० स० पृष्ठ ११
सुविहिय चुडामणि मुणिणो खरतर गुरुणो थुणस्सामि । श्रीउज्जोयण बद्धमाण सिरि सूरिजिणेसरो ||
ख. प. जै. ऐ. का. स. पृष्ठ २४