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________________ श्री राणकपुरतीर्थ ] दोनों भ्राताओं के जैसा ऊपर लिखा जा चुका है दोनों पुण्यकार्य और श्री भ्राता बड़े ही पुण्यात्मा थे। इन्होंने शत्रुञ्जयमहातीर्थ की अजाहरी, सालेर आदि ग्रामों में नवीन संघयात्रा जिनालय बनवाये। ये प्राम नांदिया ग्राम के आस-पास में ही थोड़े २ अंतर पर हैं । वि० सं० १४६५ में पिंडरवाटक में और अनेक अन्य ग्रामों . में भिन्न २ वर्षों में जिनालयों का जीर्णोद्धार करवाया, पदस्थापनायें, बिंबस्थापनायें करवाई, सत्रागार (दानशाला) खुलवाये । अनेक अवसरों पर दीन, हीन, निर्धन परिवारों की अर्थ एवं वस्त्र, अन्न से सहायतायें की। अनेक शुभावसरों एवं धर्मपर्वो के ऊपर संघभक्तियाँ करके भारी कीर्ति एवं पुण्यों का उपार्जन किया। इन्हीं दिव्य गुणों के कारण सिरोही के राजा, मेदपाट के प्रतापी महाराणा इनका अत्यधिक मान करते थे। __एक वर्ष धरणा ने शत्रुञ्जयमहातीर्थ की संघयात्रा करने का विचार किया। उन दिनों यात्रा करना बड़ा कष्टसाध्य था। मार्ग में चोर, डाकुओं का भय रहता था। इसके अतिरिक्त भारत के राजा एवं बादशाहों में द्वंद्वता बराबर चलती रहती थी। और इस कारण एक राजा के राज्य में रहने वालों को दूसरे राजा अथवा बादशाह के राज्य में अथवा में से होकर जाने की स्वतन्त्रता नहीं थी। शत्रुञ्जयतीर्थ गूर्जर भूमि में है और उन दिनों गूर्जरबादशाह अहम्मदशाह था, जिसने अहमदाबाद की नींव डाल कर अहमदाबाद को ही अपनी राजधानी बनाया था। अहम्मदशाह के दरबार में सं० गुणराज नामक प्रतिष्ठित व्यक्ति का बड़ा मान था । सं० धरणा ने सं० गुणराज के साथ में, जिसने बादशाह अहम्मदशाह से फरमाण (आज्ञा) प्राप्त किया है पुष्कल द्रव्य व्यय करके] श्री
SR No.032636
Book TitleSanghvi Dharna aur Dharan Vihar Ranakpur Tirth ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Sangh Sabha
Publication Year1953
Total Pages42
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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