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[ श्रेष्ठि संघवी धरणा
शत्रुञ्जयमहातीर्थादि की महाडंबर और दिव्य जिनालयों से विभूषित सकुशल संघयात्रा की। इस यात्रा के शुभावसर पर संघवी धरणाशाह ने, जिसकी आयु ३०-३२ वर्ष के लगभग में होगी श्री शत्रुञ्जयतीर्थ पर भगवान आदिनाथ के प्रमुख जिनालय में श्रीमद् सोमसुन्दरसूरि से संघ-समारोह के समक्ष अपनी पतिव्रता स्त्री धारलदेवी के साथ में शीलवत पालन करने की प्रतिज्ञा ग्रहण की । युवावय में समृद्ध एवं वैभवपति इस प्रकार की प्रतिज्ञा लेने वाले इतिहास के पृष्ठों में बहुत ही कम पाये गये हैं। धन्य है ऐसे महापुरुषों को, जिनके उज्ज्वल चरित्र पर ही जैनधर्म का प्रासाद आधारित है।
मांडवगढ़ के शाह- मांडवगढ़ के बादशाह हुसंगशाह का जादा गजनीखाँ को शाहजादा गजनीखाँ अपने पिता से तीन लक्ष रुपयों का रुष्ट होकर मांडवगढ़ छोड़कर निकल पड़ा ऋण देना था और वह अपने साथियों सहित
चलता हुआ आकर नांदिया ग्राम में ठहरा । यहाँ आने तक उसके पास में द्रव्य भी कम हो गया था और व्यय के लिये पैसा नहीं रहने पर वह बड़ा दुःखी हो गया था । जब उसने नांदिया में सं० धरणा की श्रीमंतपन एवं उदारता की प्रशंसा सुनी, वह सं० धरणा से मिला और उससे तीन लक्ष रुपये उधार देने की याचना की। सं० धरणा तो बड़ा उदार था ही, उसने तुरन्त शाहजादा गजनीखाँ को तीन लक्ष रुपया उधार दे दिया।
शाहजादा गजनीखाँ ने रुपया इस प्रतिज्ञा पर उधार लिया कि वह जब मांडवगढ़ का बादशाह बनेगा, सं० धरणा