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[ श्रेष्ठ संघवी धरणा
अपर नाम कर्पूरदेवी था । कामलदेवी की कुक्षी से सं० रत्ना एवं सं० धरणा (धन्ना ) का जन्म हुआ। दोनों पुत्र दृढ़ जैनधर्मी, नीतिकुशल, उदार एवं बुद्धिमान नरश्रेष्ठ थे ।
सं० रत्ना और सं० धरणाशाह
सं० रत्ना बड़ा और सं० धरणाशाह छोटा था । दोनों में अत्यधिक प्रेम था । सं० रत्ना की स्त्री का नाम रत्नादेवी था । रत्नादेवी की कुक्षी से लाषा, सलषा, मना, सोना और सालिग नामक पाँच पुत्र हुये थे । सं० धरणा की स्त्री का नाम धारलदेवी था और धारदेवी की कुक्षी से जाषा और जावड़ नामक दो पुत्र उत्पन्न हुए थे । सं० रत्ना और सं० धरणा दोनों भ्राता राजमान्य और गर्भश्रीमन्त थे । सिरोही - राज्य के प्रति प्रतिष्ठित कुलों में से इनका कुल था । दोनों भ्राता बड़े ही धर्मिष्ठ एवं परोपकारी थे । सं० धरणा अपने बड़े भ्राता सं० रत्ना से भी अधिक उदार, सहृदय, धर्म और जिनेश्वरदेव का परमो - पासक था । वह बड़ा ही सदाचारी, सत्यभाषी और मितव्ययी था। धर्म के कार्यों में, दीन-हीनों की सहायता में वह अपने द्रव्य का सदुपयोग करना कभी नहीं भूलता था । सिरोही के प्रतापी राजा सेसमल की राजसभा में इन्हीं गुणों के कारण सं० धरणा का बड़ा मान था ।
प्रा० जै० ले० सं० भा० २ के ले० ३०७ में मांगण छपा है । पं० लालचन्द्र भगवानदास गांधी, बड़ौदा और मैं दोनों बड़ौदा जाते समय ता० २१ दिसम्बर सन् १६५२ को श्री राणकपुरतीर्थ की यात्रा करते हुए गये थे । हमने मूल लेख जो प्रमुख देवकुलिका के बाहर एक बड़े प्रस्तर पर उत्कीर्णित है पढ़ा था । उसमें स्पष्ट शब्द में सांगण उत्कीर्णित है ।