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मिश्रबंधु-विनोद बुधि बिनु नर जैसे, पंछी बिनु पर जैसे,
सेवा बिनु डर जैसे, नीति बिनु भूप है। (१७९०) देव कवि काष्ठ-जिह्वा, बनारसी ये महाराज संस्कृत के बड़े भारी विद्वान् थे । आपने एक दफ़े गुरु से विवाद करके प्रायश्चित्तार्थ अपनी जीभ पर काष्ठ की खोल चढ़ाकर सदा को बोलना बंद कर दिया। इन्होंने ये ग्रंथ बनाएविनयामृत, रामलगन [प्र० त्रै० रि० ], रामायणपरिचर्या [ खोज १६०४ ], वैराग्यप्रदीप और पदावली सात कांड । (खोज ११०१) (१८९७)। इनकी कविता विशेषतया भगवद्भक्ति के विषय पर होती थी। वह प्रशंसनीय है । इनकी गणना तोष की श्रेणी में की जाती है । महाराजा बनारस के यहाँ इनका बड़ा आदर होता था। उदाहरण
___ जग मंगल सिय जू के पद हैं । ( टेक) जस तिरकोण यंत्र मंगल के अस तरवन के कद हैं। मजहि गमावहिं ते तन मन के जिनकी अटक विरद हैं। मंगन हू के मंगल हरि जह सदा बसे ए हद हैं ॥१॥ नाम-(१७९१) रत्नहरि। ग्रंथ-सत्योपाख्यान, अर्थात् रामरहस्य का भाषा उल्था । रचनाकाल-१८६६ । विवरण-साधारण श्रेणी | ग्रंथ दोहा, चौपाइयों में है। कहीं
कही और छंद भी है। इसमें १२५ पृष्ठ हैं । यह ग्रंथ हमने दरबार पुस्तकालय छतरपुर में देखा। च० त्रै० रि० में इनके दाशरथी दोहावली, रारार्थ दोहावल्ली, जमक-दमकदोहावली, रामरहस्य पूर्वार्द्ध तथा
रामरहस्य उत्तरार्द्ध-नामक ग्रंथ मिले हैं। उदाहरण