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परिवर्तन-प्रकरण
यह रामराय रहस्य दुरलभ परम प्रतिपादन कियो; श्रीराम करुना करि लहिय । बिन सासु नहिं पावन बियो। श्रुतिसार सर्वसु सर्व सुकृत बिपाक जिय जानो यही; रघुबीर ब्यास प्रसाद ते पायो कह्यो |तुमसों सहीं। नाम-(१७६१) कृष्णसिंह । १८६५, के पूर्व-ग्रंथ उदधि
मंथिनी टीका। नाम-( १७९२) किशोरदास, पीतांबरदास के शिष्य
.. निंबार्क संप्रदाय के । ग्रंथ-(1) निजमनसिद्धांतसार, (२) गणपतिमाहाल्य, ' (३) अध्यात्मरामायण । [प्र. ० रि०] रचनाकाल-११००। विवरण-प्रथम ग्रंथ में भक्तों के विस्तारपूर्वक. कथन, एवं मन के
सिद्धांत वर्णित हैं। इसके तीन खंड १५८ सना फुलस्कैप साइज़ के हैं। यह ग्रंथ हमने दरबार छतरपूर
में देखा है। काव्य-लालित्य साधारण श्रेणी का है। उदाहरण
लखि दारा सब सार सुख, परसत हसत उदार;
मरकट जिमि निरतत हसत सिकिलि उतारि-उतारि । बढ़त अधिक ताते रस रीती; घटत जात गुरुजन पर प्रीती। सीखत सुनत विषय की बातें; ऐंठत चलत निरखि निज गातें। बल दै बाँधत पाग बिसाला; पंच रँग कुसुम गुच्छ उर माला ।
हास करत पितु मातु ते, अटत करत उतपात
धन दै करि निज बाम को, पितु जननी सजि भ्रात । नाम-( १७६३ ) कृष्णानंद व्यास, गोकुल। ग्रंथ-रागसागरोद्भव रागकल्पद्रुम संग्रह । रचनाकाल-११००।